हरिहर झा

मार्च 28, 2024

होली का उल्लास लिए

Filed under: Uncategorized — by Harihar Jha हरिहर झा @ 5:20 पूर्वाह्न

अंतरिक्ष से ग्रह-मंडल रंग यहाँ लाते
होली का उल्लास लिए गीत मधुर गाते

टिमटिम नयन शुक्र शनि के
हँसी-ठिठोली ऐसे
गुरू-गंभीर नजर पड़ी
होंश ठिकाने वैसे
धरणी का मुख लाल हुआ लज्जा के नाते

छींटे बनते इंद्रधनुष
छेड़े सबको काहे
यहाँ हबा में मदहोंशी
पिचकारी सी बाहें
बौछारें करते छोरे मंद हँसी पाते

नभ में लीला कान्हा की
निहारिका सुध खोती
भू पर तारे नृत्य करें
चमके उल्का-मोती
गगन गूँजता मुरली से रसमय सुर भाते

https://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/holi/2023/geet/harihar_jha.htm


नवम्बर 3, 2023

समदुखियारे

Filed under: अनुभूति,गीत — by Harihar Jha हरिहर झा @ 3:44 पूर्वाह्न
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काका मैं, शीशम दो समदुखियारे

जीवन महुआ जैसा
थू थू कड़वा
चिलचिलाती धूप
छोड़ गया भडुवा
छैयाँ दी वे, दुर्जन निकले सारे

नीलकण्ठ हैं हम
खींच जहर लेने
दर्द पी गये
औषध बन सुख देने
पाकर चैन वे डाल गये किनारे

अकड़न गई फिसल
शरीर में वैसे
टहनी काटी,
कटी धमनियाँ जैसे
फैंका ज्यों कबाड़, घाव दिये गहरे

चले गये
वही हमारी हत्या कर
दी जिनको
सारी उर्जा जीवन भर
भुला न पाये, हम, वे दिल से प्यारे

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/1vriksh/shisham/geet/hariharjha.htm

https://wordpress.com/post/hariharjha.wordpress.com/100

अक्टूबर 3, 2023

शोक में, उल्लास में

Filed under: अनुभूति,गीत — by Harihar Jha हरिहर झा @ 7:59 अपराह्न
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शोक में, उल्लास में
दो बूँद आँसू झिलमिलाये
देखकर प्यासे सुमन पगला गये और खिलखिलाये

साज़िश थी इक
सूर्य को बन्दी बनाने के लिये
जंजीर में की कैद किरणें
तमस लाने के लिये
नादान मेंढक हुये आगे,
राह इंगित कर रहे
कोशिशों में जूगनुओं ने
चमक़ दी और पर हिलाये
देखकर नन्हे शिशु पगला गये और खिलखिलाये

बाद्लों के पार
बेचैनी भरी मदहोश चितवन
देख सुन्दर सृष्टि को ना
रोक पाई दिल की धड़कन
भाव व्याकुल हो तड़ित-सा
काँप जाता तन बदन
मधुर आमन्त्रण दिये,
निशब्द होठों को हिलाये
देखकर रूठे सनम पगला गये और खिलखिलाये

नृत्य काली रात में था
शरारत के मोड़ पर
सुर बिखरता, फैल जाता
ताल लय को तोड़ कर
छू गया अंतस
प्रणय का गीत मुखरित हो उठा
थम गई साँसे उलझ कर
जाम लब से यों पिलाये
देखकर प्यासे चषक पगला गये और खिलखिलाये

Your Look

शोक में, उल्लास में
दो बूँद आँसू झिलमिलाये
देखकर प्यासे सुमन पगला गये और खिलखिलाये

साज़िश थी इक
सूर्य को बन्दी बनाने के लिये
जंजीर में की कैद किरणें
तमस लाने के लिये
नादान मेंढक हुये आगे,
राह इंगित कर रहे
कोशिशों में जूगनुओं ने
चमक़ दी और पर हिलाये
देखकर नन्हे शिशु पगला गये और खिलखिलाये

बाद्लों के पार
बेचैनी भरी मदहोश चितवन
देख सुन्दर सृष्टि को ना
रोक पाई दिल की धड़कन
भाव व्याकुल हो तड़ित-सा
काँप जाता तन बदन
मधुर आमन्त्रण दिये,
निशब्द होठों को हिलाये
देखकर रूठे सनम पगला गये और खिलखिलाये

नृत्य काली रात में था
शरारत के मोड़ पर
सुर बिखरता, फैल जाता
ताल लय को तोड़ कर
छू गया अंतस
प्रणय का गीत मुखरित हो उठा
थम गई साँसे उलझ कर
जाम लब से यों पिलाये
देखकर प्यासे चषक पगला गये और खिलखिलाये

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/varshamangal/2020/harihar_jha.htm

Your Look :

YOUR LOOK!

सितम्बर 7, 2023

तड़तड़ करता भुट्टा निकला

Filed under: अनुभूति — by Harihar Jha हरिहर झा @ 8:44 पूर्वाह्न
Tags: , ,

तड़तड़ करता भुट्टा निकला
लाल लपट की परतें फाड़

नींबू नमक लगा है इस पर
और मसाला शाही सुंदर
दरी बिछाई पिकनिक वाली,
सज गई अपनी मेज निराली
मुझे क्यों नहीं, चिल्लाते हैं
पप्पू जी की सुनो दहाड़

मक्का है कतार तारों की
छाई बदली लहसुन
दाँत लगाये, निकल न पाये
गाड़ लो फिर तुम नाखून
मिर्च मसाला कम या ज्यादा
तुरंत लिया है ताड़

हमला है तैयार माल पर
चाहत है सबका हो एक
हरी परत खोली थी हमने
आओ मिलकर दें सब सेक
नहीं मिलेगा भुट्टा उसको
जो कहता है इसे कबाड़

चाटेंगे स्वादिष्ट मसाले,
बैठ गपोड़ेबाज
पेट दुखेगा रात रात भर
क्या है कहीं इलाज?
होगा इक नन्हा सा चूहा
खोदे जायें पहाड

– हरिहर झा

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/bhutta/geet/hariharjha.htm

https://www.poemhunter.com/harihar-jha/poems/#google_vignette

मई 2, 2022

वादे रहे सदा झूठे

Filed under: Uncategorized — by Harihar Jha हरिहर झा @ 3:21 पूर्वाह्न

वादे रहे सदा झूठे
उमेठो क्या कान! तोबा

लम्बे चले भाषण बड़े
पब्लिक सेवा के नाते
फ़िल्मी भोंडापन चलता
लाउडस्पीकर चिल्लाते

कान के पर्दे फटेंगे
कर्कश स्वर गान तोबा

दो मत मुझे, ख़ैरात लो !
मंच से रुपये बरसते
चिराग लो अलादीन का
जीत कर तुमको नमस्ते

फिर समझोगे तुम्हारी
तड़पती क्यों जान तौबा

सूत्र सुंदर भविष्य के
घोषणा में हैं लिखाये
एक तो ठर्रा पिलाया
सरग के सपने दिखाये

झूम जाये कहीं धरती
चढ़ गई जो तान तोबा

वायरल हो गई ट्विटर
बाँध नक़्शे में दिखाये
क्या पता दिक्क़त किसी की
एक गगरी के लिये

कई मीलों चले पैदल
धूर्त को ना भान तौबा

रहा ’चाबुक’, साथ ’गाजर’
फल हमारी बंदगी का
चूँ-चपड़ कुछ भी किया तो
डर दिखाया ज़िन्दगी का

बस्तियाँ धूँ धूँ जलेंगी
जो उलट मतदान तौबा

https://sahityakunj.net/entries/view/vaade-rahe-sadaa-jhuuthe

मार्च 7, 2022

हे राम

Filed under: Uncategorized — by Harihar Jha हरिहर झा @ 7:40 पूर्वाह्न
Tags: ,

हेराम! कहाँ आवश्यक है

कोई वचन निभाना।

ख्याली लड्डू दो वोटर को

काहे जंगल जंगल सड़ना

हर पिशाच से हो समझौता

काहे खुद लफड़े में पड़ना

हाथ मिला कर राजनीति में

मक्खन खूब उड़ाना।

पत्ता काटो हर कपीश का

दूध में मक्खी सेवादार

कहाँ फँसे वनवासी दल में

अयोध्या के ओ राजकुमार!

कैमरा हो, शबरी से मिल

चित्र केवल खिंचवाना।

गले पड़े ना केवट कोई

रहने दो अपने दर्जे में

सत्ता रखो इंद्र वरुण पर,

नर्तकियाँ ख़ुद के कब्ज़े में

जाम इकट्ठा वोट बैंक में

भर भर चषक पिलाना।

https://m.sahityakunj.net/entries/view/hey-ram

जनवरी 2, 2022

साहित्य घटिया लिख दिया

Filed under: Uncategorized — by Harihar Jha हरिहर झा @ 8:26 पूर्वाह्न
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गप्प लिख दी
मस्ती में, स्याही काली ही तो है
आँख खोली
तो दिखा यह भूत है, भविष्य है।

हीरो बन कर काटता,
नार अबला को चिकोटी
मैं विधाता,
लफंगे को बनाता सेलिब्रिटी
मन बहल जाये,
दिखाता गुंडों का नाच नंगा
हर्ज क्या?
कल्पना में, खून की बहती है गंगा
टकराव घातक किये,
थे जो, आकृति धारण किये
आँख खोली तो दिखा
यह इंसान है, मनुष्य है।

नेता अभिनेता के नखरे
रहें मेरी दृष्टि में
अँधे बधिर अपंग
इक कोने में मेरी सृष्टि में
जाम साक़ी से पिलाये
चषक भर भर पाठकों को
छीन कर के कौर रूखे,
वंचित किये हज़ारों को
निवालों का ढेर कचरा
फेंक कूड़ेदान में
आँख खोली तब दिखा
यह पवित्र है, हविष्य है|

मनोरंजन हो,
न कोई बोर हो मेरी कृति में
दाद-खाज खुजालने का
रस बहुत हो विकृति में
दुनिया रची,
लोभ नफ़रत का मसाला तेज़ हो
बिलखते श्रमिक को कोई
पीटता अंगरेज़ हो
अन्याय, शोषण से फँसा,
साहित्य घटिया लिख दिया
आज का यह विश्व उसका
सूत्र है और भाष्य है।

https://sahityakunj.net/entries/view/sahitya-ghatiya-likh-diya

दिसम्बर 2, 2021

तुरत छिड़ गया युद्ध

Filed under: Uncategorized — by Harihar Jha हरिहर झा @ 11:59 अपराह्न
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गुनगुनाकर निर्मल कर दे,
अंतर्मन का आंगन
सिर झुकाया एक नजर भर
चमके कितना कंगन।

सोने जैसा रूप
मुद्रा की तर्ज डॉलर
तेरे जलवों की नकल पर,
चल रहे पार्लर
तीर निकले नैनो से,
या बेलन का आलिंगन
सिर झुकाया एक नजर भर
चमके कितना कंगन।

रतनारी आँखे मौन,
ज्यों निकले अंगार
कुरूप समझे सबको
किये सोला सिंगार
टीका करे सास-ननद की
टीका करे सुहागन
सिर झुकाया एक नजर भर
चमके कितना कंगन।

पल में बुद्ध बन जाती
पल में होती क्रुद्ध
आलिंगन अभिसार,
लो तुरत छिड़ गया युद्ध
रूठी फिर तो खैर नहीं,
विकराल रूपा जोगन
सिर झुकाया एक नजर भर
चमके कितना कंगन।

https://sahityakunj.net/entries/view/tuart-chhid-gayaa-yudh

तुरत छिड़ गया युद्ध 

Filed under: Uncategorized — by Harihar Jha हरिहर झा @ 11:54 अपराह्न
Tags:

गुनगुनाकर  निर्मल कर दे,

अंतर्मन का आंगन

सिर झुकाया एक नजर भर  

चमके कितना कंगन।

सोने जैसा रूप 

मुद्रा  की तर्ज  डॉलर

तेरे जलवों की नकल पर,

चल रहे पार्लर

तीर निकले  नैनो से,   

या बेलन का आलिंगन

सिर झुकाया एक नजर भर  

चमके कितना कंगन।

रतनारी आँखे  मौन,

ज्यों निकले अंगार

कुरूप समझे सबको 

किये सोला सिंगार

टीका करे सास-ननद की 

टीका करे सुहागन 

सिर झुकाया एक नजर भर  

चमके कितना कंगन।

पल में बुद्ध बन जाती

पल में होती क्रुद्ध

आलिंगन अभिसार,  

लो तुरत छिड़ गया युद्ध

रूठी फिर तो खैर नहीं,   

विकराल रूपा जोगन

सिर झुकाया एक नजर भर  

चमके कितना कंगन।

अक्टूबर 8, 2021

डूब गई लुटिया 

Filed under: Uncategorized — by Harihar Jha हरिहर झा @ 6:47 पूर्वाह्न

बचाओ रे मेरी, डूब गई लुटिया 

नाम था मेरा, 
बना फिरता, सच्चे ईमान की दुम
चोरी मेरी पकड़ ली गई 
तो सिट्टी पिट्टी गुम 
झट उखाड़ कर 
धर दी हाथ में चुटिया 
बचाओ रे मेरी, डूब गई लुटिया 

दे नज़रों का धोखा, 
मैंने, तो कर दी चालाकी 
घाटे में रक्खा था उसके 
पैसे रहते बाक़ी
उलटा लूटा मुझे 
माल मिला घटिया 
बचाओ रे मेरी, डूब गई लुटिया 

पर्स मैंने छीनना चाहा, 
मुझ पर झपटी उलटा 
सवार मेरी गर्दन पर थी, 
कैसी थी वह कुलटा 
न समझा कुछ मैं, 
खड़ी हो गई खटिया
बचाओ रे मेरी, डूब गई लुटिया 

सुन्दरता की 
मूरत थी वह,नज़र बन गई काँटा 
देह छू ली संगमरमर सी 
मिला करारा चाँटा 
फाड़ गई धोती 
दूर गिरी लकुटिया
बचाओ रे मेरी, डूब गई लुटिया 

http://sahityakunj.net/entries/view/doob-gayi-lutiyaa

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