हरिहर झा

नवम्बर 3, 2023

समदुखियारे

Filed under: अनुभूति,गीत — by Harihar Jha हरिहर झा @ 3:44 पूर्वाह्न
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काका मैं, शीशम दो समदुखियारे

जीवन महुआ जैसा
थू थू कड़वा
चिलचिलाती धूप
छोड़ गया भडुवा
छैयाँ दी वे, दुर्जन निकले सारे

नीलकण्ठ हैं हम
खींच जहर लेने
दर्द पी गये
औषध बन सुख देने
पाकर चैन वे डाल गये किनारे

अकड़न गई फिसल
शरीर में वैसे
टहनी काटी,
कटी धमनियाँ जैसे
फैंका ज्यों कबाड़, घाव दिये गहरे

चले गये
वही हमारी हत्या कर
दी जिनको
सारी उर्जा जीवन भर
भुला न पाये, हम, वे दिल से प्यारे

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/1vriksh/shisham/geet/hariharjha.htm

https://wordpress.com/post/hariharjha.wordpress.com/100

अक्टूबर 3, 2023

शोक में, उल्लास में

Filed under: अनुभूति,गीत — by Harihar Jha हरिहर झा @ 7:59 अपराह्न
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शोक में, उल्लास में
दो बूँद आँसू झिलमिलाये
देखकर प्यासे सुमन पगला गये और खिलखिलाये

साज़िश थी इक
सूर्य को बन्दी बनाने के लिये
जंजीर में की कैद किरणें
तमस लाने के लिये
नादान मेंढक हुये आगे,
राह इंगित कर रहे
कोशिशों में जूगनुओं ने
चमक़ दी और पर हिलाये
देखकर नन्हे शिशु पगला गये और खिलखिलाये

बाद्लों के पार
बेचैनी भरी मदहोश चितवन
देख सुन्दर सृष्टि को ना
रोक पाई दिल की धड़कन
भाव व्याकुल हो तड़ित-सा
काँप जाता तन बदन
मधुर आमन्त्रण दिये,
निशब्द होठों को हिलाये
देखकर रूठे सनम पगला गये और खिलखिलाये

नृत्य काली रात में था
शरारत के मोड़ पर
सुर बिखरता, फैल जाता
ताल लय को तोड़ कर
छू गया अंतस
प्रणय का गीत मुखरित हो उठा
थम गई साँसे उलझ कर
जाम लब से यों पिलाये
देखकर प्यासे चषक पगला गये और खिलखिलाये

Your Look

शोक में, उल्लास में
दो बूँद आँसू झिलमिलाये
देखकर प्यासे सुमन पगला गये और खिलखिलाये

साज़िश थी इक
सूर्य को बन्दी बनाने के लिये
जंजीर में की कैद किरणें
तमस लाने के लिये
नादान मेंढक हुये आगे,
राह इंगित कर रहे
कोशिशों में जूगनुओं ने
चमक़ दी और पर हिलाये
देखकर नन्हे शिशु पगला गये और खिलखिलाये

बाद्लों के पार
बेचैनी भरी मदहोश चितवन
देख सुन्दर सृष्टि को ना
रोक पाई दिल की धड़कन
भाव व्याकुल हो तड़ित-सा
काँप जाता तन बदन
मधुर आमन्त्रण दिये,
निशब्द होठों को हिलाये
देखकर रूठे सनम पगला गये और खिलखिलाये

नृत्य काली रात में था
शरारत के मोड़ पर
सुर बिखरता, फैल जाता
ताल लय को तोड़ कर
छू गया अंतस
प्रणय का गीत मुखरित हो उठा
थम गई साँसे उलझ कर
जाम लब से यों पिलाये
देखकर प्यासे चषक पगला गये और खिलखिलाये

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/varshamangal/2020/harihar_jha.htm

Your Look :

YOUR LOOK!

सितम्बर 7, 2023

तड़तड़ करता भुट्टा निकला

Filed under: अनुभूति — by Harihar Jha हरिहर झा @ 8:44 पूर्वाह्न
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तड़तड़ करता भुट्टा निकला
लाल लपट की परतें फाड़

नींबू नमक लगा है इस पर
और मसाला शाही सुंदर
दरी बिछाई पिकनिक वाली,
सज गई अपनी मेज निराली
मुझे क्यों नहीं, चिल्लाते हैं
पप्पू जी की सुनो दहाड़

मक्का है कतार तारों की
छाई बदली लहसुन
दाँत लगाये, निकल न पाये
गाड़ लो फिर तुम नाखून
मिर्च मसाला कम या ज्यादा
तुरंत लिया है ताड़

हमला है तैयार माल पर
चाहत है सबका हो एक
हरी परत खोली थी हमने
आओ मिलकर दें सब सेक
नहीं मिलेगा भुट्टा उसको
जो कहता है इसे कबाड़

चाटेंगे स्वादिष्ट मसाले,
बैठ गपोड़ेबाज
पेट दुखेगा रात रात भर
क्या है कहीं इलाज?
होगा इक नन्हा सा चूहा
खोदे जायें पहाड

– हरिहर झा

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/bhutta/geet/hariharjha.htm

https://www.poemhunter.com/harihar-jha/poems/#google_vignette

अगस्त 30, 2020

सम दुखियारे

Filed under: अनुभूति,गीत — by Harihar Jha हरिहर झा @ 6:46 पूर्वाह्न

काका मैं, शीशम दो समदुखियारे

जीवन महुआ जैसा
थू थू कड़वा
चिलचिलाती धूप
छोड़ गया भडुवा
छैयाँ दी वे, दुर्जन निकले सारे

नीलकण्ठ हैं हम
खींच जहर लेने
दर्द पी गये
औषध बन सुख देने
पाकर चैन वे डाल गये किनारे

अकड़न गई फिसल
शरीर में वैसे
टहनी काटी,
कटी धमनियाँ जैसे
फैंका ज्यों कबाड़, घाव दिये गहरे

चले गये
वही हमारी हत्या कर
दी जिनको
सारी उर्जा जीवन भर
भुला न पाये, हम, वे दिल से प्यारे

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/1vriksh/shisham/geet/hariharjha.htm

सितम्बर 13, 2019

हिन्दी में

Filed under: अनुभूति,मंच — by Harihar Jha हरिहर झा @ 12:53 पूर्वाह्न

उर्दू, बृज, अवधि के कवि का रंग समाया हिन्दी में
तुलसी, मीरा ने भक्ति का गीत सुनाया हिन्दी में

कन्नड, बंगला गुजराती हो, सब को बहना सी प्यारी
विविध सुरों में समरसता का जादू भाया हिन्दी में

बालक की तुतलाहट, माँ की लोरी थी किस भाषा में
बड़बड़ गीत से खेले थे उनको भी गाया हिन्दी में

गीतों की झंकार, दिलों का प्यार धड़कता है किस में
बोलिवुड का चमत्कार इसलिये तो छाया हिन्दी में

आजादी के लिये कौनसी भाषा बोली बापू ने
अंग्रेजों का जुल्म समझ में सबको आया हिन्दी में

चक्कर खाये रामू ने जब आँफ़िस में गिटपिट सुन कर
मन्त्री तक को आसमान से नीचे लाया हिन्दी में

’अनुभूति’ में:

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/hindi/harihar_jha.htm

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/hindi/harihar_jha.htm

जून 4, 2013

साथ नीम का

Filed under: अनुभूति — by Harihar Jha हरिहर झा @ 4:38 पूर्वाह्न
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पत्ता पत्ता रोयें जैसा
उँगली जैसी डाली
हरे रंग के दामन से लो चली
हवा मतवाली

विषकन्या नाचे धमनी में
निबौलियाँ शाखों में
अद्भुत छटा न देखी जाय
सुन्दरतम लाखों में
अजब गजब देती खुशहाली
छाया से रिस रिस कर बहती पूनम
रात उजाली

नीचे शिला ग्रामदेव की
झुके सभी का माथा
सुने पवन जो माटी बोले
एक विरानी गाथा
गाए अदभुत करे जुगाली
चरमर बिखरे पत्तों में, माया की
छाया काली

झाँक दिलों में देखे सबके
सपने ऊँचे ऊँचे
स्नेह उँडेला झगड़े टाले
इस छाया के नीचे
बज गई मौसम की करताली
सरबत कड़वा, स्नेह दूध सा, करती
है रखवाली।

-हरिहर झा

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/neem/hariharjha.htm

http://www.navgeetkipathshala.blogspot.com.au/2013/05/blog-post_28.html
A Gulmohr Tree:
http://hariharjha.com/2007/02/11/a-gulmohr-tree/

अगस्त 25, 2011

सपने में जो देखा

Filed under: अनुभूति,गीत — by Harihar Jha हरिहर झा @ 4:51 पूर्वाह्न
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कुदरत का यह लेखा
सपने में जो देखा
सुबह वही तो समाचार है

ताक-झाँक की थी पड़ोस में
’विकिलिक्स’ अखबार में छाये
टपकी लार बनी ईंधन तो
भट्टी खुद ही जलती जाये

लावा बहे दनादन
रीता घट रोता मन
छपी खबर का यही सार है

गाली मन में दबी पड़ी थी
गोली बन कर निकल पड़ी है
ख़्वाबों में जो लाश बिछाई
मौत सामने तनी खड़ी है

दिवास्वप्न तो दूर
अंतस् का दर्पण चूर
भीतर गहरा अंधकार है |

-हरिहर झा
“नवगीत की पाठशाला” से साभार :

http://navgeetkipathshala.blogspot.com/2011/04/blog-post_19.html

Cheers or Jeers

http://www.boloji.com/index.cfm?md=Content&sd=Poem&PoemID=446

नवम्बर 21, 2007

पतझड़ी-वसन्त

Filed under: अतुकांत,अनुभूति — by Harihar Jha हरिहर झा @ 11:22 अपराह्न
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दुनिया वालों, सुनो सुनो
खूब मजे लो वसन्त ऋतु के
पर कुछ हमारी भी सुनो।
भारत क्या और चीन क्या
यूरोप और अमरिका क्या
“या निशा सर्वभूतानां”
जब सारी दुनिया
पसीने से तरबतर
तब हम ऑस्ट्रेलियावासी
लिहाफ ओढ़ते हैं
हीटर चलाते हैं
जब दुनिया ठन्ड से थर थर कांपती
तब हमें दिखते हैं ‘सी-बीच’ पर
अर्धनग्न नजारे
दिल कहे न…जा …ऱे …।

सिलिकन वेली के खिलते सुमन
और भारत के
अनजान कस्बे की कोयल
कंप्यूटर के वेबकेम पर
सुर में सुर मिलाती हैं
“वसन्त आया”
तब मेरी खिड़की से बाहर
सूखे पत्ते आवारा पशुओं की भांति
एक दूसरे पर गिरते हुये
भटकते हैं
तब जी चाहता है
सिर अपना सड़क पर
ठोक ठोक कर उल्टा चलुं
पैरों से सोच सोच कर
दिवाली में खेलुं फाग
और होली में पटाखें छोडूं
क्योंकि हम तो
ऑस्ट्रेलियावासी
धरती के निचले गोलार्ध में
मकड़ी की भांती
पैर जमीन से चिपका कर
उल्टे चलते हैं।

 -हरिहर झा

http://www.anubhuti-hindi.org/smasyapurti/samasyapurti_02/02_04pravishtiyan4.htm#hj

For The boredom read :

http://hariharjha.wordpress.com/2007/02/16/the-boredom/

OR

http://hariharjha.wordpress.com

नवम्बर 14, 2007

धरा पर गगन

Filed under: अनुभूति,गीत — by Harihar Jha हरिहर झा @ 11:24 अपराह्न
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खुशियों की बौछार खिलखिलाता मौसम आया
उड़ता है मन मगन धरा पर गगन उतर आया

देवालय पर पूर्ण चन्द्रमा अनहोनी यह बात
दीप जल रहे लगता निकली तारों की बारात
फुलझडि़यों की माला निहारिकाओं का आभास
फूट रहे पटाखे बम चलते कदमों के पास

युवकों की शरारत मस्ती का आलम छाया
उड़ता है मन मगन धरा पर गगन उतर आया

चरणों में लक्ष्मी मैया के झुक झुक जाता माथ
मिठाइयां सूखे मेवे ले लेते भर भर हाथ
भागे दुख जंजाल छा गई दीप पर्व की माया
गोल घूम रहे ग्रह नक्षत्र स्वर्ग यहां लो आया

इन्द्रलोक की उर्वशी का नृत्य उतर आया
उड़ता है मन मगन धरा पर गगन उतर आया

खेल रहे खिलौनों से बन वायुयान के चालक
नई नई पौशाक अकड़ते खेल रहे हैं बालक
इन्तजार था महिनों से कि कब आये दिवाली
लटक मटकते झूम बजाते दो हाथों से ताली

तोतली बोली शिशुओं की  कितना आनन्द समाया
उड़ता है मन मगन धरा पर गगन उतर आया।

 – हरिहर झा

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/shubh_deepawali/hariharjha.htm

Smiled the Sun :

http://hariharjha.wordpress.com/2007/02/16/smiled-the-sun/

OR

http://hariharjha.wordpress.com

अक्टूबर 31, 2007

प्रिये तुम्हारी याद

Filed under: अनुभूति,गीत,Uncategorized — by Harihar Jha हरिहर झा @ 11:15 अपराह्न
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प्रेम पाशमय जीवन सुना कर जाने के बाद
महक उठी नन्हीं बगिया में प्रिये तुम्हारी याद

  
झिलमिल स्मृति चित्र उभरते और सताते मुझको
अकुलाए से पंथ प्यार की राह जताते मुझको
झूम रहे वे नयन चकोरे मुस्काते फूलों में
झुला रहे मदभरे प्यार से हिलमिल के झूलों में

  
स्वर मधुर सब तेरे लगते सुन विहंग के नाद
महक उठी नन्हीं बगिया में प्रिये तुम्हारी याद

  
व्यथित नयन बस जगे जगे से एक झलक की आस
रूप गंध कुछ स्पर्श  नहीं इस तनहाई के पास
स्वप्नों में जी भर देखा पर बुझी न उर की प्यास
दिवास्वप्न बुन बुन  कर मेरी पीड़ा बनी उदास

  
सहा न जाता एकाकी पल घिर आया अवसाद
महक उठी नन्हीं बगिया में प्रिये तुम्हारी याद

       -हरिहर झा

http://www.anubhuti-hindi.org/dishantar/h/harihar_jha/priye.htm

For  The terrible hurricane  click on:

http://hariharjha.wordpress.com/2007/02/16/the-terrible-hurricane/

OR

http://hariharjha.wordpress.com

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