हरिहर झा

जून 15, 2020

सुर्ख़ियों में कहाँ दिखती

Filed under: साहित्य सुधा — by Harihar Jha हरिहर झा @ 11:59 पूर्वाह्न
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सुर्ख़ियों में कहाँ दिखती
सुर्ख़ियों में कहाँ दिखती,  
खग मृग की  तान   

खबर है पत्ती खिला कर, 
नोट बस खुद ही चबाये
लात मारी, चढ़े सीढ़ी,  
विरोधी न चढ़ पाये

देख लो, मन्त्री पद की  
कुर्सियों की शान

अगली खबर  है  नग्न लेखन, 
चित्र अश्लिल लगा लिये 
साहित्य कह कर चैक ले 
सरस्वती का संग किये  

कुण्ठा से ग्रसित लेखन  
लिखता शैतान  

फोटू छपा है हाथ में  
सत्य का दीपक जलाते  
पोत रहे,  काजल मुख पर,  
अशर्फियाँ बहुत कमाते

मैला दिमाग में ढो कर, 
कर रहे अहसान 

उलट गीता कैसे  हुई, 
अर्जुन उधर  सठिया रहे   
भ्रमित है धृतराष्ट्र क्यों?  
संजय इधर बतिया रहे
   
दौड़ते टीआरपी  को 
बेचे ईमान

http://www.sahityasudha.com/articles_oct_1st_2018/kavita/harihar_jha/surkhiyan.html