Kritya-2 | अनहदकृति | साहित्य-कुंज । boloji । अनुभूति । कृत्या। kritya |PoemHunter
| हिन्द-युग्म | सृजनगाथा । आखर कलश । काव्यालय । नवगीत | साहित्य-सुधा
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| हिन्द-युग्म | सृजनगाथा । आखर कलश । काव्यालय । नवगीत | साहित्य-सुधा
देह छू कर रूह तक को
छू लिया मैंने।
उछाली उंगली
कि नभ को छू लिया मैंने।
व्यर्थ है
उड़ना हवा में
चाँद तारे खोजना
व्यर्थ है मंगल, शनि कुछ,
भेजने की योजना।
डर की आँधी, सर्प उड़ते
आग का पसीजना।
बम-धमाकों के ठहाके,
रुदन का बस गुंजना,
डूब आँसू में समन्दर पा लिया मैंने।
आँख कजरारी
कभी तो दे गई झांसा,
मन सुलगता
कोई जादू कर गई ऐसा।
दिल दिवारें ध्वस्त,
कैसे दूर हो हिंसा
भोग की दुनिया में
आई प्रेम की लिप्सा।
कली खिलती तो
बहारें खोल दी मैंने।
उगले शराब महुवा
सिकुड़े
मीठी खजुरिया
कूप अंधा डींग में
मात हो गया दरिया
आँधी में रोय रही
लालटेन बावरिया
फूँस के तिनके चले
उड़ी मेरी छपरिया
जोड़ तिनकों का,
बना ली मंजिलें मैंने।
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