ये नशीली आंखे जो मिली मर कर कयामत के दिन
समझा कयामत में भी पाई सागरेशराब
हंसी लब खुले पर निकल न पाया कोई लफ्ज़
ये मुहब्बत का अंदाजेबयां या दिल मे कशमकश
हां पर उड़ते आकाश मे ना कहती तो मर जाते
सवालेवस्ल सुना झट से क्यों गर्दन झुकाली
इकरारेमुहब्बत का अन्दाजेबयां सुभानल्ला
जरूर दिल से गुफ्तगू में पस्त हुआ जमाने का डर
नामोनिशां न होगा कल से रंग का रूप का
शामे जुदाई इस डर से खड़ी है रंगीन लिबास में
लब सी लिये मैंने जमाने की शिकायत सुन कर
गमख्वार मिला तो चंद शेर सुनाने को तरस गया
जिन्दगी करती खुशामद कि यह लो वह लो
खूनेतमन्ना के बाद बाकी क्या बच गया
बिखर गई तेरी महफिल फिर दुबक लिये सपनो मे
दिल से कभी जाने न देंगे दिल का ये वादा है
कह दिया जो कल तुमने हर लफ्ज मे बस तुम हो
था एक अदना सा सपना वह सपना केवल तुम हो
-हरिहर झा