हरिहर झा

नवम्बर 3, 2023

समदुखियारे

Filed under: अनुभूति,गीत — by Harihar Jha हरिहर झा @ 3:44 पूर्वाह्न
Tags: , ,

काका मैं, शीशम दो समदुखियारे

जीवन महुआ जैसा
थू थू कड़वा
चिलचिलाती धूप
छोड़ गया भडुवा
छैयाँ दी वे, दुर्जन निकले सारे

नीलकण्ठ हैं हम
खींच जहर लेने
दर्द पी गये
औषध बन सुख देने
पाकर चैन वे डाल गये किनारे

अकड़न गई फिसल
शरीर में वैसे
टहनी काटी,
कटी धमनियाँ जैसे
फैंका ज्यों कबाड़, घाव दिये गहरे

चले गये
वही हमारी हत्या कर
दी जिनको
सारी उर्जा जीवन भर
भुला न पाये, हम, वे दिल से प्यारे

http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/1vriksh/shisham/geet/hariharjha.htm

https://wordpress.com/post/hariharjha.wordpress.com/100

टिप्पणी करे »

अभी तक कोई टिप्पणी नहीं ।

RSS feed for comments on this post. TrackBack URI

टिप्पणी करे