हरिहर झा

अक्टूबर 8, 2021

डूब गई लुटिया 

Filed under: Uncategorized — by Harihar Jha हरिहर झा @ 6:47 पूर्वाह्न

बचाओ रे मेरी, डूब गई लुटिया 

नाम था मेरा, 
बना फिरता, सच्चे ईमान की दुम
चोरी मेरी पकड़ ली गई 
तो सिट्टी पिट्टी गुम 
झट उखाड़ कर 
धर दी हाथ में चुटिया 
बचाओ रे मेरी, डूब गई लुटिया 

दे नज़रों का धोखा, 
मैंने, तो कर दी चालाकी 
घाटे में रक्खा था उसके 
पैसे रहते बाक़ी
उलटा लूटा मुझे 
माल मिला घटिया 
बचाओ रे मेरी, डूब गई लुटिया 

पर्स मैंने छीनना चाहा, 
मुझ पर झपटी उलटा 
सवार मेरी गर्दन पर थी, 
कैसी थी वह कुलटा 
न समझा कुछ मैं, 
खड़ी हो गई खटिया
बचाओ रे मेरी, डूब गई लुटिया 

सुन्दरता की 
मूरत थी वह,नज़र बन गई काँटा 
देह छू ली संगमरमर सी 
मिला करारा चाँटा 
फाड़ गई धोती 
दूर गिरी लकुटिया
बचाओ रे मेरी, डूब गई लुटिया 

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