घंटी बजते ही मंदिर में
दीपक कईं जले
काली रात अमावस ने लो,
वस्त्र धरे उजले।
लक्ष्मी जी की शुरू आरती,
कर्पूर की महक
फैली खुशी हवा में इतनी,
मन में उठी चहक।
नये नये वस्त्रों में बालक
कैसे डोल रहे
लड्डू देख देख शिशु अपना,
मुखड़ा खोल रहे
लार टपकती, सब बच्चों के
मीठे बोल चले।
मुस्कानो से जुड़ती जाती
चूड़ी की खनखन
सुना अप्सराओं ने,
रुनझुन आन बजे घनघन।
दीपक देते रहे रोशनी,
चाँद सितारों को
खुशी बाँटती रही फुलझड़ी
कईं हजारों को,
देख देख हँसते फूलों को
मुस्काये गमले।
काँटे पुष्प बने माला में,
कलि बतियाती हैं
सब हैं दुल्हा दुल्हन पूरा,
विश्व बराती है
जीवन जैसे खुद ब्रह्मा ने
दुनिया नई रची।
राह नई, गली अंधियारी
मन में कहाँ बची
तमस भले ही हो ताकतवर,
कभी न दाल गले।
किसने इंद्र वरुण अग्नि को,
आफत में डाला
सौलह हजार ललनाओं पर
संकट का जाला
नरकासुर का दर्प दहाड़ा
शक्ति का आभास
दुर्गति रावण जैसी ही तो
बोलता इतिहास
ज्योत जली, यह देखा
अचरज़ लौ की छाँव तले।
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