उड़नतश्तरी में
तारों का गुच्छा लगता है
वायदों का पतंग तुम्हारा अच्छा लगता है
रंभा की क्रीड़ा दिखला दी
बॉलीवुड से लाकर
रक्तबीज को भभकी दी
नाटक में गाल फुला कर
फिल्मी सम्मोहन ने
लाक्षागृह में यों भरमाया
शकुनी मामा का पासा अब कच्चा लगता है।
’बिजली’ देखी चन्द्रकला सी
जगी भाग्य की रेखा
खूब उड़े नभ में
पतंग के नीचे हमने देखा
डोर नहीं थी
सर्प नचाते बाजीगर की माया
काले दानव का जादू अब बच्चा लगता है।
कन्नी कटने वाली
चरखी नेताजी का पेट
मांजा बिल्कुल तेज लगा है
पतंग बना राकेट
चिंगारी भस्मासुर की
तो दहकी पूरी काया
स्वांग मोहिनी रूप में भी तो सच्चा लगता है।
http://www.anhadkriti.com/harihar-jha-poem-vaaydOn-kaa-patang
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बहुत ही उम्दा …….. Very nice collection in Hindi !! 🙂
टिप्पणी द्वारा HindIndia — अक्टूबर 4, 2016 @ 8:12 पूर्वाह्न |
nice hindi poems. hindi is our mother language . we all should join our hands together to promote it
टिप्पणी द्वारा PAWAN KUMAR — नवम्बर 12, 2016 @ 10:13 पूर्वाह्न |