-हरिहर झा
आंसू मे डूबी वीणा ले मधुर गीत मै कैसे गाता
बचपन मेरा सूखा पतझड़ हरियाली मै कैसे लाता
खेलकूद सब बेच दिया बस दो पैसों के खातिर
बहा पसीना थका खून खाने को तरस गया फिर
गिरवी रख कर बचपन मजदूरी से जोड़ा नाता
शाला कैसे जा पाता जब रूठा हाय< विधाता
तरस गया देह ढंकने को यूनिफार्म कहां से लाता
बचपन मेरा सूखा पतझड़ हरियाली मै कैसे लाता
बस्ता लिये चला स्कूल मै सपना ऐसा देखा
सोने के मेडल से चमकी अरे! भाग्य की रेखा
दिनभर शरीर झुलसाने के झगड़े हो गये दूर
भोंपू बजा कान मे मेरे सपने हो गये चूर
कैसे भूखा रह कर र्खचा फीस किताबों का कर पाता
बचपन मेरा सूखा पतझड़ हरियाली मै कैसे लाता
किस्मत ऐसी कहां कि हंस कर किलकारी मैं भरता
रोज बाप की गाली खाकर पिट जाने से डरता
कैसे अपने आंसू पोछूं नरक बना यह जीवन
गुमसुम सोच न पाता कैसे दुख झेले यह तनमन
मां बूढ़ी बीमार खाट पर उसे खिलाता क्या मै खाता
बचपन मेरा सूखा पतझड़ हरियाली मै कैसे लाता।
1 जून 2005
*(संगीत-रूप में उपलब्ध)
http://www.anubhuti-hindi.org/dishantar/h/harihar_jha/patjhad.htm
शायद ऊपर वाली कमेंट ठीक से पोस्ट नहीं हुई अतः वर्डप्रैस.कॉम में लॉगइन करके दोबारा पोस्ट कर रहा हूँ।
हरिहर जी नमस्कार। आज ब्लॉगर सर्च से आपके ब्लॉग पर पहुँचा और आपका ब्लॉग देखा। यह जानकर हैरानी हुई कि हिन्दी काव्य से संपन्न होने के बावजूद आप हिन्दी ब्लॉगजगत से नहीं जुड़े हैं।
आपको हिन्दी जगत के अन्य सदस्यों तक अपनी आवाज पहुँचाने के लिए हिन्दी जगत से जुड़ने की आवश्यकता है। इससे आपको एक विशाल पाठक वर्ग उपलब्ध होगा। हिन्दी की कुछ सामुदायिक साइटें हैं जिनके बारे में मैं आपको बता रहा हूँ।
‘नारद’ एक साइट है जिस पर सभी हिन्दी ब्लॉगों की पोस्टें एक जगह देखी जा सकती हैं। हिन्दी चिट्ठाजगत (ब्लॉगजगत) में चिट्ठों पर आवागमन नारद के जरिए ही होता है।
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उम्मीद है जल्द ही नारद और परिचर्चा पर दिखाई दोगे।
श्रीश शर्मा ‘ई-पंडित’
टिप्पणी द्वारा Shrish — मार्च 3, 2007 @ 11:39 अपराह्न |
Dhanyavaad Shirish Ji. Abhi abhi Sadasya banaa huN.
Aashaa hei bhavishya me bhi sahyog dete raheNge.
-Harihar
टिप्पणी द्वारा Harihar Jha हरिहर झा — मार्च 5, 2007 @ 12:30 पूर्वाह्न |